तुलसी एक घरेलू पौधा है। भारत में लगभग हर घर में तुलसी का पौधा देखने को मिल जाता है। यहां तुलसी का अपना धार्मिक और औषधीय महत्व है। भारत में जहां हिंदू धर्म में तुलसी के पौधे की पूजा की जाती है, तो वहीं कई औषधि के रुप में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है।
औषधि के रूप में तुलसी Aushdhi ke Roop mein Tulsi
तुलसी के औषधीय गुण जैसे कि जीवों और विषाणुओं के रोधक होने के कारण यह हवा को शुद्ध करने में सहायक है। तुलसी से बनी दवाइयों को तनाव, बुखार, सूजन को कम करने और सहनशक्ति को बढ़ाने के इलाज के लिए इस्तेमाल किया जाता है। आजकल दवाइयों से लेकर साबुन, शैम्पू, फेसवॉश, फैसपैक जैसी कई चीजें बनाने में भी तुलसी का बड़े पैमाने में उपयोग किया जाने लगा है। जिससे तुलसी की मांग बाजार में काफी बढ़ गई है।
ऐसे में तुलसी के मांग की पूर्ति बिना खेती के संभव नहीं है। तुलसी की खेती में आपको कुछ हजार रुपए ही खर्च करने की जरुरत है, लेकिन कमाई लाखों में होती है। इस तरह की वैकल्पिक खेती करके ही किसान अपनी आय बढ़ा रहे हैं।
तुलसी की विभिन्न किस्में Tulsi ki Vibhinn Kismen
- स्वीट फेंच बेसिल या बोबई तुलसी
- कर्पूर तुलसी
- काली तुलसी
- वन तुलसी या राम तुलसी
- जंगली तुलसी
- श्री तुलसी या श्यामा तुलसी
- अमृता तुलसी
तुलसी की खेती के लिए जलवायु और भूमि Tulsi ki k
Kheti ke liye Jalwayu aur Bhumi
तुलसी लगभग भारत के हर हिस्से में उगाया जाता है। इसलिए तुलसी के लिए उष्ण कटिबंध एवं कटिबंधीय दोनों तरह की जलवायु उपयुक्त होती है। तुलसी कई तरह की मिट्टी में उगाई जाती है। लेकिन बलुई दोमट मिट्टी, क्षारीय मिट्टी, कम लवणीय मिट्टी इसके लिए अधिक उपयुक्त मानी गई है। इसके लिए जल निकासी की अच्छी व्यवस्था होना जरूरी है क्योंकि जल जमा होने से जड़ें गलने लगती हैं और पैदावार कम होती है। इसके बढ़िया विकास के लिए मिट्टी का पीएच 5.5-7 होना चाहिए।
सही समय Sahi Samay
तुलसी को बोने के लिए जून- जुलाई का महीना सबसे सही माना जाता है। वहीं कटाई के लिए नवंबर से जनवरी का महीना उपयुक्त माना जाता है।
भूमि की तैयारी Bhoomi ki Taiyari
तुलसी की खेती के लिए शुष्क मिट्टी अच्छी मानी जाती है। इसके लिए मिट्टी के भुरभुरा होने तक हैरो के साथ खेत की जोताई करें। जमीन की जोताई दो हफ्ते में पूरी हो जानी चाहिए। तुलसी की अच्छी खेती के लिए जमीन को अच्छी तरह बारीक करके इसमें 15 टन गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर अच्छी तरह मिलाकर क्यारियां बना ली जाती है।
बुवाई/ रोपाई Buwai/Ropai
तुलसी की खेती बीज और शाखाओं के रोपन दोनों ही तरीकों से की जा सकती है। बीज द्वारा इसकी खेती करने पर सीधे बुवाई नहीं करनी चाहिए। पहले इसकी नर्सरी तैयार करनी चाहिए। बाद में उसकी रोपाई करनी चाहिए।
बीज द्वारा खेती Beej Dwara Kheti
तुलसी की खेती के लिए 120 ग्राम बीजों का प्रयोग प्रति एकड़ में करना चाहिए। फरवरी के तीसरे महीने में नर्सरी बैड तैयार करें। नर्सरी में 2 सेंटीमीटर मिट्टी के नीचे बोना चाहिए। पौधे के विकास के अनुसार, 4.5 x 1.0 x 0.2 मीटर के सीड बैड तैयार करें। बीजों को 60×60 सैं.मी. के फैसले पर बोयें। बीज 8 – 12 दिन में उगते हैं। बिजाई के 6-7 हफ्ते बाद, फसल की रोपाई खेत में करें।
शाखाओं द्वारा खेती Shakhaon Dwara Kheti
बीज के अलावे तुलसी की टहनियों को काटकर भी तुलसी की खेती की जा सकती है। इसके लिए तुलसी की टहनी की 10 से 15 लम्बी शाखाओं को काटकर उन्हें छाया में रखकर सुबह – शाम के समय हजारे से पानी दें। एक महीने में तुलसी के पौधे की जड़ें भूमि में विकसित हो जाती है। जब तुलसी के पौधे की जड़ें और पत्तियां निकलने लगे तो हम इसकी रोपाई कर सकते है। तुलसी के पौधे को जुलाई के पहले सप्ताह में बोना चाहिए। तुलसी के पौधे की रोपाई 45 *45 सेंटीमीटर की दुरी पर करें।
खाद और उर्वरक Khad aur Urwark
बुवाई से एक महीने पहले गोबर की खाद 15 टन प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में डालें। 75-80 किग्रा नाइट्रोजन, 40 किग्रा फॉस्फोरस और 40 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है। नाइट्रोजन की एक तिहाई और फॉस्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा खेत में डालकर जमीन में मिला दें। बचे हुए नाइट्रोजन की मात्रा दो बार टॉप ड्रेसिंग के रूप में देनी चाहिए।
सिंचाई Sinchai
गर्मियों के मौसम में तुलसी के खेत में महीने में 3 सिंचाइयां करें और बरसात के मौसम में, सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती। पहली सिंचाई रोपण के बाद करें और दूसरी सिंचाई नए पौधों के स्थिर होने पर करें। 2 सिंचाइयां करनी आवश्यक है और बाकी की सिंचाई मौसम के आधार पर करें।
निराई-गुड़ाई Nirai Guddai
इसकी पहली निराई गुड़ाई रोपाई के एक महिने बाद करनी चाहिए। दूसरी निराई गुड़ाई पहली निराई के 3-4 सप्ताह बाद करनी चाहिए। बड़े क्षेत्रों में गुड़ाई ट्रैक्टर से की जा सकती है।
सावधानियां Sawdhniyan
- तुलसी की रोपाई के लिए केवल स्वस्थ पौधे का चुनाव करना चाहिए।
- फसल को मिट्टी से पैदा होने वाली बीमारीयों से रोकथाम के लिए, बिजाई से पहले मैनकोजेब 5 ग्राम प्रति किलोग्राम से बीजों का उपचार करें।
- तुलसी में हानिकारक कीटों से रोकथाम के लिए 300 मि.ली. कुइनल्फोस को 150 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ पर स्प्रे करें।
- तुलसी के पौधों को बिमारियों से बचाने के लिए मैनकोजेब 4 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
कटाई Katai
जब पौधे में पूरी तरह से फूल आ जाए और नीचे के पत्ते पीले पड़ने लगे तो इसकी कटाई कर लेनी चाहिए। रोपाई के 10-12 सप्ताह के बाद यह कटाई के लिए तैयार हो जाती है। पौधे को 15 सेमी जमीन से ऊपर रखकर शाखाओं को काटें ताकि इनका दोबारा प्रयोग किया जा सके।
भंडारण और उपयोग Bhandaran aur Upyog
कटाई के बाद पत्तों को सूखाया जाता है। फिर तेल के लिए इसका अर्क निकाला जाता है। एक- जगह से दूसरे जगह ले जाने के लिए इसे हवादार बैग में पैक किया जाता है। पत्तों को सूखे स्थान पर स्टोर किया जाता है। इसकी जड़ों से कई तरह के उत्पाद जैसे तुलसी अदरक, तुलसी पाउडर, तुलसी चाय और तुलसी कैप्सूल आदि तैयार किये जाते हैं।
पैदावार Paidawar
तुलसी की पैदावार लगभग 5 टन प्रति हेक्टेयर साल में 2 से 3 बार ली जा सकती है। वहीं एक साल में तेल का पैदावार 80-100 किग्रा. हेक्टेयर तक होता है।
लागत और लाभ Lagat aur Labh
1 हेक्टेयर पर तुलसी उगाने में केवल 15 हजार रुपए खर्च होते हैं लेकिन 3 महीने बाद ही यह फसल लगभग 3 लाख रुपए तक बिक जाती है। वहीं प्रति हेक्टेयर तेल की पैदावार 85 किलो मानें तो बाजार में ये तेल 450 रुपए किलो बिकती है। ऐसे में कुल आमदनी 38250 रुपए हुई। जिसमें से अगर प्रति हेक्टेयर लागत 10500 रुपए निकाल लिए जाएं तो शुद्ध लाभ 27,750 रुपए होता है।
निष्कर्ष Conclusion
तुलसी की खेती बहुत ही लाभकारी साबित होती है। इन दिनों पतंजलि, डाबर, वैद्ययनाथ आदि आयुर्वेद दवाएं बनाने वाली कई ऐसी दवा कंपनियां देश में है जो फसल खरीदने तक का कांट्रेक्ट करती हैं, जिससे कमाई सुनिश्चित हो जाती है। तुलसी की खेती से जुड़ा हमारा ये लेख आपको कैसा लगा कमेंट कर के हमें जरूर बताएं। आपके लिए खेती से जुड़ी कई ऐसी महत्वपूर्ण जानकारियां हम लेकर आते रहेंगे।