जब एक बार में एक से अधिक फसल एक जगह पर उगाया जाती है तो उसे मिश्रित फ़सल कहते हैं। पूराने समय से ही मिश्रित फसलों की खेती हमारी कृषि प्रणाली का एक अभिन्न अंग रही है। हमारे पूर्वजों ने बहुफसलीय खेती की संकल्पना मौसम की विपरीत परिस्थितियों में फसल सुरक्षा के लिए की थी।
क्योंकि जब एक खेत में एक ही साथ दो-या-दो से अधिक फसलें उगाई जाती हैं तो यह संभावना होती है कि अगर कोई फसल मौसम की असामान्यता के कारण नष्ट हो जाए तब भी दूसरी या तीसरी फसल बच सकती है। ऐसे में उस विषम परिस्थिति में भी खेत से लाभ प्राप्त किया जा सकता है। सिन्धु घाटी की सभ्यता के एक प्रमुख स्थल कालीबंगा से मिले जुताई के कूड़ों से पता चला है कि उस समय भी कई फसलों को एक साथ मिला कर खेती की जाती थी। मोहनजोदड़ो में गेहूं, जौ तथा चना की खेती एक साथ मिला कर की जाती थी।
मिश्रित फसल खेती के सिद्घांत और प्रणाली
- सभी फसलों की वृद्धि का क्रम, उनकी जड़ों की गहराई और उनके पोषक तत्वों की आवश्यकता अलग-अलग होती है। ऐसे में दो ऐसी फसलें जैसे आलू + मक्का, हल्दी + अरहर, मूंगफली + अरहर, जिनमें एक उथली जड़ वाली और दूसरी गहरी जड़ वाली हों, तो दोनों मिट्टी की अलग-अलग सतहों से नमी एवं पोषक तत्वों का भरपूर अवशोषण तथा उपयोग करती हैं और इस प्रकार जल एवं पोषक तत्वों के उपयोग की क्षमता बढ़ने से उनकी उपज बढ़ जाती है।
- वहीं कुछ फसलों की उपस्थिति उसकी सहयोगी फसल को कीड़ों के आक्रमण से बचाती है। जैसे मक्का की फसल में ज्वार, लाल मिर्च में सौंफ तथा चना की फसल में धनिया की मिश्रित खेती कुछ ऐसे ही उपयोगी उदाहरण हैं।
सिंचित क्षेत्र के लिए मिश्रित फसल प्रणाली
रबी मक्का + आलू, आलू + बाकला, रबी मक्का + राजमा (मैदानी क्षेत्रों के लिए) रबी मक्का + धनिया (हरी पत्तियों के लिए), शरदकालीन गन्ना+ मिर्च, गन्ना + धनिया, गन्ना+मगरैला, गन्ना+ लहसुन, गन्ना+ आलू, गन्ना+गेहूं, गन्ना+अजवाइन, गन्ना+मसूर, बसन्त कालीन गन्ना+भिण्डी, गन्ना+मूंग? गन्ना+उड़द, प्याज+अजवाइन, प्याज+भिण्डी, प्याज+मिर्च, सौंफ+मिर्च
असिंचित क्षेत्र के लिए मिश्रित फसल प्रणाली
बाजरा+ मूंग, बाजरा+अरहर, मक्का+उड़द, गेहूं+चना, जौ+चना, जौ + मटर, ज्वार+ अरहर और गेहूं+मटर
अनाज के फसलों का तिलहन फसलों के साथ मिश्रण
गेहूं+सरसों, जौ+ सरसों, गेहूं+अलसी, जौ+अलसी
दलहन फसलों का दलहन और तिलहन फसलों के साथ मिश्रण
अरहर+मूंग, अरहर+उड़द, अरहर+मूंगफली, चना+ अलसी, चना + सरसों, मटर+सरसों, मटर+ कुसुम
दो से अधिक फसलों का मिश्रण
ज्वार+अरहर+मूंग , बाजरा+अरहर+मूंग, ज्वार+अरहर+उड़द, जौ+मटर+ सरसों, चना+ सरसों+ अलसी, चना+अलसी+कुसुम और गेहूं+चना+सरसों
आइए यहां हम आपको कुछ फसलों के साथ मिश्रित फसल खेती की पूरी प्रक्रिया की जानकारी विस्तृत रुप से देते हैं।
कैसे करें खेत की तैयारी
सबसे पहले जून महीने के तीसरे-चौथे सप्ताह तक खेत में पड़ा कूड़ा-करकट साफ कर देते हैं। उसके बाद बारिश होने के बाद खेत की पहली जुताई ट्रैक्टर से कराते हैं। फिर दो से तीन जुताई हल से और ट्रैक्टर से करते हैं।
फसल का चयन
ऐसी फसल बोने को प्राथमिकता देते हैं, जिनमें पानी की आवश्यकता कम हो। साथ ही एक फसल चक्र पूरा होने के बाद दूसरे फसल चक्र में अलग फसलों की बुवाई करते हैं। प्रतिवर्ष फसल बदल-बदल कर बोते हैं, जिससे खेत को पर्याप्त पोषक तत्व व नमी मिलती रहे।
बीज की प्रजाति
घर पर संरक्षित व सुरक्षित देशी बीजों का प्रयोग करते हैं।
बीज की मात्रा
एक एकड़ खेत में मिश्रित बुवाई करने के लिए अरहर 5 किलोग्राम, बाजरा 2 किलोग्राम, मूंग 2 किलोग्राम और तिल डेढ़ किलोग्राम को मिलाकर बुवाई करते हैं।
बुआई का समय और तरीका
अगस्त महीने के पहले हफ्ते में छिटकवा विधि से बुवाई करते हैं। इसके लिए खेत की आखिरी जुताई ट्रैक्टर से करने के पश्चात् 3 से 5 इंच की गहराई पर इसकी बुवाई ट्रैक्टर की सहायता से सीडड्रिल मशीन से ही कराते हैं।
खाद
एक एकड़ हेतु एक ट्राली देशी खाद की आवश्यकता होती है, जिसे पहली जुताई के समय खेत में मिला दिया जाता है। किसान चाहे तो जीवामृत का भी प्रयोग कर सकते हैं।
निराई
फसल की बढ़वार होती रहे, इसके लिए समय-समय पर खेत की निराई की जाती है। इससे एक तरफ तो हमारा खेत साफ रहता है और दूसरी तरफ जानवरों के लिए चारा भी उपलब्ध हो जाता है।
पकने की अवधि
बाजरा, मूंग व तिल के पकने की अवधि 60-90 दिनों की होती है, जबकि अरहर 8-9 महीने की फसल ही है, जो मार्च में पक जाती है।
कटाई का समय और मड़ाई
तिल की फसल की कटाई सितम्बर के अंतिम सप्ताह या फिर अक्टूबर के प्रथम सप्ताह तक हो जाती है। तिल की कटाई करके, एक जगह सुखा कर, डण्ठल को हिलाकर इसका बीज झाड़ लिया जाता है।
मूंग की एक-एक फली की तुड़ाई की जाती है। यह तुड़ाई सितम्बर के प्रथम सप्ताह से प्रारम्भ हो जाती है। इसकी कुटाई करके बीज निकाला जाता है।
बाजरा की कटाई अक्टूबर के अंतिम सप्ताह या नवम्बर के प्रथम सप्ताह तक हो जाती है। बाजरा की मड़ाई बैलों से करते हैं। इसके दाने निकालने के लिए थ्रेसर का प्रयोग भी किया जा सकता है।
मार्च में अरहर पकने के बाद इसकी कटाई कर लेते हैं। अरहर को काटकर सुखाते हैं। तब कुटाई करके इसका बीज निकालते हैं।
उपज
देशी बाजरा :- 4 क्विंटल
देशी अरहर – 1 क्विंटल
देशी तिल- 50 किलोग्राम
देशी मूंग- 30 किलोग्राम
मिश्रित फसल उत्पादन से लाभ
- इससे भूमि की बचत होती है।
- खेत की लागत कम हो जाती है।
- मैसेज फसलोत्पादन फसलों के असफलता के विरुद्ध एक प्रकार का बीमा है अथवा इंश्योरेंस।
- भूमि से जल तथा पोषक तत्वों के अवशोषण में संतुलन बना रहता है।
- प्रति इकाई खेत से अधिक उपज पैदा होती है।
- मृदा का कटाव कम हो जाता है।
सारांश
आजकल के युग में खेती योग्य भूमि पर जनसंख्या का बोझ दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है। ऐसी परिस्थिति में मिश्रित खेती अपना कर किसान प्रति इकाई भूमि से अधिक उत्पादन ले सकते हैं। हमारे देश में कृषिगत क्षेत्र का लगभग 65 प्रतिशत भाग वर्षा पर आधारित है। प्राकृतिक आपदा जैसे अनावृष्टि के कारण-सूखा या अतिवृष्टि के कारण बाढ़ के फलस्वरूप बहुधा फसलें बिलकुल नष्ट हो जाती हैं। इस प्रकार की परिस्थिति में आर्थिक दृष्टिकोण से मिश्रित खेती सुरक्षा कवच का काम करती है।