ऋषि कृषि
पेड़ पौधों की वृद्धि और उनसे अच्छा उत्पादन लेने के लिए जिन जिन संसाधनो की आवश्यकता होती है, उन सभी संसाधनों को प्रकृति से ही जुटाना ऋषि कृषि कहलाता है। पुराने समय मे हमारे ऋषि मुनि इसी पद्ध्ति का प्रयोग करते थे तथा उत्तम किस्म के अन्न एव फलों का उत्पादन करते थे। ऋषि कृषि मे किसी प्रकार की लागत ना होने की वजय से यह पद्धति वर्षों तक भारतीय कृषि का आधार रही।आओ हम ऋषि कृषि के सिद्धान्त के बारे मे विस्तार से जानते हैं।
ऋषि कृषि के सिद्धांत Rishi Krishi ke Siddhant
1. देसी गाय Desi Gay
ऋषि कृषि मुख्य रूप से गाय पर आधारित कृषि है । देसी गाय के एक ग्राम गोबर मे 300 से 500 करोड़ तक जीवाणु होते हैं । जबकि विदेसी गाय के एक ग्राम गोबर मे अस्सी लाख से भी कम जीवाणु पाये जाते हैं।
देसी गाय के गोबरअवम मुत्र की महक से देसी केंचुए भूमि की सतह पर आ जाते हैं और भूमि को उपजाऊ बनाते हैं । देसी गाय के गोबर मे 16 मुख्य पोशाक तत्व पाये जाते हैं । इन्ही 16 पोशाक तत्वों को पौधे भूमि से लेकर अपने शरीर का निर्माण करते हैं । ये 16 तत्व देसी गाय के आंत मे निर्मित होते हैं । इसलिए देसी गाय हमारे ऋषि मुनियों के आश्रम मे निश्चित रूप से रखी जाती थी ।
2. जुताई Jutai
ऋषि कृषि की मान्यता है की गहरी जुताई भूमि की उपजाऊ शक्ति को कम कर देती है 360 डिग्री तापमान होते ही भूमी से कार्बन उड़ना शुरू हो जाता है। और ह्यूमस की निर्माण क्रिया रुक जाती है। जिसके कारण भूमि की उपजाऊ शक्ति कम हो जाती है।
3. जल प्रबंधन Jal Parbandhan
ऋषि कृषि मे सिंचाई पौधों से कुछ दूरी पर की जाती है इसमे केवल 10 प्रतिशत जल का हे उपयोग होता है और इस प्रकार पानी की भी बचत होती है । इस विधि से सिंचाई करने से पौधों की जड़ो की लंबाई बढ़ जाती है जिससे पौधों की लंबाई भी बढ़ जाती है और अधिक उत्पादन प्राप्त होता है।
4. पौधों की दिशा Paudhon ki Disha
हमारे ऋषि मुनि वनस्पति विज्ञान के बहुत बड़े जानकार थे इसलिए ऋषि कृषि मे पौधों की दिशा उत्तर दक्षिण रखी जाती थी जिससे पौधों को सूर्य का प्रकाश अधिक समय तक मिलता रहे। और हम भी सभी जानते हैं कि पौधे अपना भोजन सूर्य के प्रकाश से ही बनाते हैं । इस विधि से पौधा रोपण करने से किट लगने कि संभावना भी काफी कम हो जाती है । मात्र इस विधि का प्रयोग करके ही हम अपने उत्पादन को 20 प्रतिशत तक बढ़ा सकते हैं।
5. सहयोगी फसलें Sahyogi Faslen
क्योंकि हमारे ऋषि मुनि कृषि विज्ञान के ज्ञाता थे वो ये भी जानते थे कि मुख्य फसल के साथ सहयोगी फसल का क्या महत्तव है। जिससे मुख्य फसल को नाइट्रोजन, फासफोरस, पोटाश आदि सहयोगी फसलों से मिलता रहे ।
सहयोगी फसलों की जड़ों के पास नाइट्रोजन स्थिरक जीवाणु जैसे राइजोबियम, अस्सोस्पिरिलम अजोतोबक्टर आदि कि मदद से पौधों का विकास होता है । इस विधि से कृषि करने से कीट नियंत्रण भी स्वत हो जाता है।
6. आच्छादन Aachhadan
ऋषि कृषि मे आच्छादन का विशेष महत्तव है । भूमि कि सतह के ऊपर फसलों के अवशेष ढकना आच्छादन कहलाता है । इससे पानी कि बचत होती है और भूमी से कार्बन भी नहीं उड़ता, जिससे भूमि की उर्वराशक्ति बढ़ती है साथ ही साथ देसी केंचुओं कि गति विधियाँ बढ़ जाती हैं
देसी केंचुओं कि विष्ठा मे सामान्य मिट्टी से 7 गुना नाइट्रोजन,9 गुना फास्फोरस और 11 गुना पोटाश होता है जिससे भूमि शीघ्र सजीव हो उठती है।
7. सूक्ष्म पर्यावरण Sukshm Paryavaran
ऋषि कृषि मे 65 प्रतिशत से 72 प्रतिशत तक नमी, 25 डिग्री से 32 डिग्री तक वायु का तापमान, भूमि के अंदर अंधेरा, वापसा, ऊब और छाया चाहिए । इन परिस्थितियों के निर्माण को हे सूक्ष्म पर्यावरण कहते हैं । इन परिस्थितियों का निर्माण आच्छादन द्वारा निर्मित किया जाता है ।
8. केषाकर्षण शक्ति Keshakarshan Shakti
ऋषि कृषि मे पौधे केषाकर्षण शक्ति के द्वारा मिट्टी कि गहराई से पोशाक तत्वों को प्राप्त कर लेते हैं । भूमि के नीचे 5 इंच कि मिट्टी मे जीवाणु पर्याप्त मात्रा मे पाये जाते हैं। रसायनिक खादों के कारण यह शक्ति काम नहीं कर पाती। क्योकि रसायनिक खादों से मिट्टी मे नमक जमा हो जाता है जैसे कि यूरिया मे 46 प्रतिशत नाइट्रोजन और 54 प्रतिशत नैपदा ( नमक ) होता है । जो मिट्टी के दो कणों के बीच जमा हो जाता है ।
मिट्टी की गहराई मे पोशाक तत्वों का भंडार होते हुए भी पौधे उन्हे ग्रहण नहीं कर पाते, क्योंकि वंहा पर केषाकर्षण शक्ति काम नहीं कर पाती। ऋषि कृषि मे केंचुओं कि गति विधियाँ बढ़ जाने के कारण मिट्टी के दो कणों के बीच 50 प्रतिशत नमी और 50 प्रतिशत हवा का संचरण होता है जिससे ऋषि कृषि मे शक्ति का उपयोग करके पौधे अपना विकास कर लेते हैं । इसलिए ऋषि कृषि मे पौधे अच्छा उत्पादन देते हैं।
9. देसी केंचुओं कि गतिविधियां Desi Kenchon ki Gatividhiyan
हमारे देसी केंचुए जब भूमि के अंदर ऊपर-नीचे गमन करते हैं तो भूमि कि सतह को खाध्य तत्वों से समृद्ध बनाते हैं । आच्छादन के कारण भूमि के अंदर केंचुओं के सहायक सूक्ष्म वातावरण का निर्माण होता है जो जुताई से भी ज्यादा भूमि को सशक्त बनाता है।
10. गुरुत्वाकर्षण बल Gurtvakarshan Bal
ऋषि कृषि मे गुरुत्वाकर्षण बल कि वजय से पौधे पोशाक तत्वों को आसानी से प्राप्त कर लेते हैं क्योंकि पौधे जिस पोशाक तत्व को जंहा से उठाता है वंहा ही अंत मे उसको जाना पड़ता है । जैसे पौधा अपने शरीर के निर्माण मे हवा से 78 प्रतिशत पानी लेता है लेकिन अपने जीवन कि समाप्ती पर वह दोबारा हवा को ही लौटा देता है ।
11. देसी बीज Desi Beej
ऋषि कृषि मे देसी बीजों की महत्तवपूर्ण भूमिका होती है क्योंकि देसी बीज कम पोशक तत्व लेकर भी ज्यादा उत्पादन देने मे सक्षम होते हैं जबकि हाइब्रीड बीज भूमि से ज्यादा पोशक तत्व लेते हैं और धीरे धीरे जमीन को बंजर बना देते हैं ।
निष्कर्ष Conclusion
ऋषि कृषि प्र्कृती, विज्ञान, आध्यात्म अवम अहिंसा पर आधारित शाश्वत कृषि पद्धति है। ऋषि कृषि के सिद्धान्त से आपको बिना रसायनिक खाद , गोबर खाद, जैविक खाद, केंचुआ खाद, जहरीले कीटनाशक, खरपतवारनाशक, फफूंदनाशक के उत्तम कवालिटी की फसल प्राप्त होती है। केवल एक देसी गाय की सहायता से आप ऋषि कृषि की तर्ज पर खेती कर सकते हैं। आप किसी विशेष घटक के बारे मे विस्तृत जानकारी के लिए कमेंट करना न भूले।