पपीते की खेती से कमाएं लाखों रुपये। Papaya Farming

पपीता एक ऐसा फल है, जो आपको कहीं भी बड़ी ही आसानी से मिल जाता है। स्वास्थ्य के लिए बेहद ही लाभदायक पपीता विटामिन ए से भरपूर होता है। पपीते का इस्तेमाल इसके कच्चे और पके दोनों ही रुपों में किया जाता है। पपीता घरों के बगीचे में भी आसानी से लगाया जा सकता है। वैसे तो पपीते का फल बारहों महीने होता है, लेकिन कुछ खास महीने हैं जब ये विशेष रुप से उपजाया जाता है।

आन्ध्रप्रदेश, तमिलनाडु, बिहार, असम, महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, जम्मू एवं कश्मीर, उत्तरांचल और मिजोरम जैसे भारत के कई राज्य हैं जहां वृहत मात्रा में पपीते की खेती की जाती है। पपीते की खेती से मिलने वाले लाभ की वजह से आज घरों के बगीचे से लेकर बड़े पैमाने पर खेतों तक इसकी खेती की जा रही है। तो आइए जरा विस्तार से जानते हैं कि पपीते की खेती की उन्नत विधि से जुड़ी तमाम महत्वपूर्ण बातें और उसके प्रकार के बारे में।

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पपीते के किस्म Papite ki Kismein

पूसा मेजस्‍टी एवं पूसा जाइंट

वाशिंगटन

सोलो

कोयम्‍बटूर

हनीड्यू

कुंर्ग‍हनीड्यू

पूसा ड्वार्फ

पूसा डेलीसियस

सिलोन

पूसा नन्‍हा आदि

अगर पपीते के विदेशी किस्‍मों की बात करें तो इनमें ताईवनी रेड लेडी और कुछ इस्राइली किस्‍में भी अच्‍छी पैदावार देती हैं। पपीते की कई देसी और कई विदेशी दोनों तरह की हाईब्रिड किस्‍में आपको मार्केट में मिल सकती हैं।

क्षेत्रफल की दृष्टि से पपीता हमारे देश का पांचवा लोकप्रिय फल है। पपीते का वानस्पतिक नाम केरिका पपाया है।पपीते के पेड़ नर और मादा के रुप में अलग-अलग होते हैं लेकिन कभी-कभी एक ही पेड़ में दोनों तरह के फूल खिलते हैं।

पपीते की खेती के लिए जमीन और जलवायु कैसी हो Papite ki Kheti ke Liye Jamin aur Jalwayu

पपीते की खेती के लिए जमीन समतल और उपजाऊ होना चाहिए। चूंकि पपीते के पौधे को अत्याधिक पानी की जरूरत नहीं होती है, ऐसे में जमीन समतल ना होने से अगर पानी इकट्ठा होता है। तो पपीते की खेती को उससे नुकसान पहुंचता है और वो कॉलर रॉट नाम की बीमारी की चपेट में आ सकता है। इसलिए पपीते की खेती के लिए जमीन केवल नमी युक्त होनी चाहिए। वहीं इसकी खेती के लिए दोमद मिट्टी को सबसे बढ़िया माना जाता है।

पपीते की खेती वैसे तो जून- जुलाई के महीने में की जाती है, लेकिन जहां सिंचाईं का उचित प्रबंधन हो वहां सितंबर- अक्टूबर और फरवरी- मार्च में भी खेती की जा सकती है।

पपीते की खेती के लिए तैयारियां कैसे करें Papite ki Kheti ke Liye Taiyariyan Kaise Karen

भूमि की तैयारी Bhoomi ki Taiyari

पपीते की खेती के लिए सबसे पहले खेत को अच्छी तरह से जोत कर समतल बना लें। 2 X 2 मीटर जमीन पर लम्बा और चौड़ा गड्ढा बना लें। इसमें 20 किलो गोबर की खाद, 500 ग्राम सुपर फास्‍फेट और 250 ग्राम म्‍यूरेट ऑफ पोटाश को मिट्टी में मिलाकर पौधा लगाने के कम से कम 10 दिन पहले भर कर छोड़ दें। ऐसा करने से गड्‌ढों को अच्छी तरह धूप लग जाती है और हानिकारक कीड़े-मकोड़े, रोगाणु भी नष्ट हो जाते हैं।

कैसे और कितने बीज की आवश्यकता होगी ? Kaise aur Kitne Beej ki Awshyakta Hogi

पपीते की खेती बीजों के द्वारा की जाती है, इसलिए ये बेहद जरूरी है कि बीज अच्छी किस्म के हों। इसके लिए बीज अच्छी तरह से पके हुए और सूखे होने चाहिए।

पपीते की खेती पर एक हेक्टेयर जमीन के लिए लगभग 600 ग्राम से लेकर एक किलो बीज की जरुरत पड़ती है। एक हेक्टेयरजमीन में हर गड्ढ़े पर दो पौधे लगाने पर लगभग पांच हज़ार पौधेउगेंगे।

पपीते के बीजों को क्यारियों, लकड़ी के बक्सों, मिट्‌टी के गमलों और पॉलीथीन की थैलियों में भी बोया जा सकता है।

पॉलिथीन की थैली में बीज बोना Polythene ki Thaili mein Beej Bona

इसके 20 सेमी चौडे मुंह वाली, 25 सेमी लम्‍बी और 150 सेमी छेद वाले पॉलीथिन थैलियों की जरुरत होती है। इसमें गोबर की खाद, मिट्टी और रेत का मिश्रण भर दें। थैली का उपरी 1 सेमी भाग नहीं भरना चाहिए। हर थैली में 2 से 3 बीज होना चाहिए। ध्यान रहे कि मिट्टी में हमेशा र्प्‍याप्‍त नमी रहनी चाहिए। जब पौधे 15 से 20 सेमी. उंचे हो जाएं तब थैलियों के नीचे से धारदार ब्‍लेड द्वारा सावधानीपूर्वक काट कर पहले तैयार किये गये गढ्ढों में लगाना चाहिए।

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खेतों में पपीते का बीज बोना Kheton Mein Papite ka Beej Bona

खेतों में पपीते के बीज को जमीन की सतह से 15 से 20 सेमी. उंची क्‍यारियों में कतार से कतार की दूरी 10 सेमी और बीज की दूरी 3 से 4 सेमी. रखते हुए लगाते हैं। बीज को 1 से 3 सेमी. से अधिक गहराई पर नहीं बोना चाहिए। ऊंची बढ़ने वाली क़िस्मों के लिए1.8×1.8 मीटर की दूरी का ध्यान रखना चाहिए। पौधे लगते समय इस बात का ध्यान रखते हैं कि गड्ढे को ढक देना चाहिए जिससे पानी तने से न लगे।

पपीते का पौधारोपण कैसे होना चाहिए Papite ka Paudharopan Kaise Hona Chahiye

पपीते की रोपाई तीन मौसम में की जाती है। जून- जुलाई, सितंबर- अक्टूबर और फरवरी- मार्च, इसी के हिसाब से पौधा60 दिन पहले तैयार किया जाता है। खेतों पौधों की रोपाई दोपहर बाद 3 बजे से करनी चाहिए। रोपाई के बाद पानी लगाना बेहद जरूरी होता है। तैयार किए गए गड्ढों में दो या तीन पौधे थोड़ी-थोड़ी दूरी पर लगाएं।

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खाद और उर्वरक Khad aur Urvark

पपीते का पौधा बहुत ही जल्दी फल देने वाला होता है। जिस वजह से इसकी मिट्टी में मौजूद पोषक तत्व काफी जल्दी निकल जाते हैं। इसलिए इसकी अच्छी उपज के लिए 250 ग्राम नाइट्रोजन, 150 ग्राम फास्फोरस और 250 ग्राम पोटाश प्रति पौधे हर साल देना चाहिए।नाइट्रोजन की मात्रा को 6 भागों में बाँट कर पौधा रोपण के 2 महीने बाद से हर दूसरे महीने डालना चाहिए।खाद और उर्वरकों को तने से 30 सेंटीमीटर की दूरी पर पौधें के चारों ओर बिखेर कर मिट्‌टी में अच्छी तरह मिला देना चाहिए।

मिट्टी चढ़ाना Mitti Chadana

पपीते की उचित खेती के लिए गड्ढे पर पौधा आने पर 30 सेमी. की गोलाई पर मिट्टी चढ़ाना बहुत जरूरी होता है। इससे पेड़ के पास सिंचाई का पानी आधिक नहीं लगता है साथ ही इससे पौधे को सीधा खड़े रखने में मदद भी मिलती है।

नर पौधे को अलग करें Nar Paudhe ko Alag Karna

पपीते के पौधे में 100 दिनों के दर फूल आने लगते हैं। इनमें फूल आने पर 10% नर पौधे को छोड़ कर सभी नर पौधे को काट कर अलग कर देना चाहिए। नर फूल छोटे-छोटे गुच्‍छों में लम्‍बे डंढल युक्‍त होते हैं। मादा फूल पीले रंग के 2.5 से.मी. लम्‍बे और तने के नजदीक होते हैं।

जल प्रबंधन Jal Parbandhan

पपीते की अच्छी खेती के लिए गर्मियों के दिनों में 6 से 7 दिन पर और सर्दियों में 10 से 12 दिन पर सिंचाई करनी चाहिए। बारिश के मौसम में सिंचाई की आवश्यता नहीं बोती है, लेकिन बारिश न होने पर सिंचाई करें।

पपीते के पौधे को पाले से बचा कररखना चाहिए। अगर पाला पड़ने की आशंका हो तो तो शाम के समय धुँआ करने के साथहल्की सिंचाई भी कर देनी चाहिए।

खरपतवार अलग करें Kharpatwar Alag Karen

पपीते के खेतों में बहुत सारे खरपतवार उग आते हैं। पपीते को खरपतवारों के दुष्प्रभाव से बचाने के लिए हल्की निराई गुड़ाई करनी चाहिए, जिससे भूमि में हवा और पानी का अच्छा संचार बना रहे।

कीट और रोगों से बचाव Keet aur Rogon se Bachav

हर खेती की तरह पपीते की खेती को भी कीड़े- मकोड़े और विभिन्न प्रकार के रोगों का खतरा बना रहता है। मुजैक,लीफ कर्ल ,डिस्टोसर्न, रिंगस्पॉट, जड़ एवं तना सडन ,एन्थ्रेक्नोज एवं कली तथा पुष्प वृंत का सड़ना जैसे रोगों पर नियंत्रण पाने के लिए वोर्डोमिक्सचर 5:5:20 के अनुपात पर पेड़ो पर लेप करना चाहिए। दूसरे रोगों से बचाने के लिए व्लाईटाक्स 3 ग्राम या डाईथेन एम्-45, 2 ग्राम प्रति लीटर अथवा मैन्कोजेब या जिनेव 0.2% से 0.25 % का पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए। पपीते के पौधों को कीटो से कम नुकसान पहुचता है फिर भी कुछ कीड़े लगते है जैसे माहू, रेड स्पाईडर माईट, निमेटोड आदि । इससे नियंत्रण के लिए डाईमेथोएट 30 ई. सी.1.5 मिली लीटर या फास्फोमिडान 0.5 मिली लीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करने से माहू आदि का नियंत्रण होता है।

फसल कटाई और उपज Fasal Katai aur Upaj

पपीते की खेती करने के ठीक 10 से 12 महीने के बाद इसके फल तोड़ने लायक हो जाते हैं। हरे पपीते के तोड़ने पर कुछ ही दिनों में ये पक कर पीला भी हो जाता है। ध्यान रखें कि फलो को तोड़ते समय किसी प्रकार कि खरोच या दाग-धब्बे आदि न पड़ने पाए नहीं तो फल सड़कर ख़राब हो जाते हैं।

पपीते की अच्छी पैदावार मिट्टी किस्म, जलवायु और उचितदेखभाल पर निर्भर करती है। अच्छी खेती होने पर प्रति पेड़ एक मौसम में औसतउपज 35-50 किग्रा फल देता है। वहीं 15-20 टन प्रति हेक्टर उपजप्राप्त होती है।

पपीते की खेती से कमाई Papite ki Kheti se Kamai

पपीते की एक हेक्‍टेयर खेती से एक सीजन में करीब 10 लाख रुपए तक की कमाई हो सकती है। थोक भाव में पपीते को 15 रुपए प्रति किलो के हिसाब से भी बेचने पर एक क्विंटल पर 1500 रुपए मिल सकते हैं। ऐसे में करीब 13.5 लाख रुपए की फसल तैयार होती है। खेती की तैयारी में अगर आपका खर्च 3 से साढ़े 3 लाख रुपए खर्च होता है तो आप करीब 10 लाख रुपए एक सीजन में कमा सकते हैं।

निष्कर्ष Conclusion

भारत के किसी भी कोने में रहकर पपीते की खेती की जा सकती है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर पपीते के बीजों के किस्मों का उचित ख्याल और खेती के प्रबंधन पर ध्यान दिया जाए तो ये एक अच्छा व्यवसाय साबित हो सकता है। पपीते की खेती से जुड़ा हमारा ये लेख आपको कैसा लगा हमें कमेंट कर के जरूर बताएं। खेती से जुड़ी कई और जानकारियां हम आपके साथ साझा करते रहेंगे।

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About Sanjay Kaushik

मैं संजय कौशिक एक किसान, MBA इन मार्केटिंग, M.A. लोक प्रशासन और अर्थशास्त्र की पढ़ाई कर चुका हूँ। ओर मैं पिछले 14 सालों से शिक्षण और प्रशिक्षण के कार्य मे लगा हुआ हूँ। अब मैं डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग करके आप सभी तक अपनी मातृभाषा में सही खेती के मंत्र पंहुचाने का प्रयास कर रहा हूँ। उम्मीद है कि आप सभी सहयोग करेंगे!
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